"देशप्रेम और पारिवारिक कर्तव्य : जीवन की दो आधारशिला "
07 Aug 2024
"माता-पिता का स्नेह और देश का प्रेम, जीवन की सबसे बड़ी धरोहर हैं, इन्हें संजोकर रखना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।"
सिर्फ़ सरहद पर जाना ही देशभक्ति नहीं ,बल्कि देश के हित में किया गया प्रत्येक कार्य देशभक्ति है और यही प्रेम देश के प्रति प्रेम दर्शाता है । किसी भी देश का उत्थान युवाओं के योगदान बिना संभव नहीं| भारतीय समाज में शिक्षा केवल विद्या तक सीमित नहीं है; इसमें नैतिकता, समाजिक मूल्य और जीवन कौशल भी शामिल हैं। भारतीय संस्कृति में विभिन्न त्योहारों और परंपराओं के माध्यम से शिक्षा और ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। आजकल बच्चों में विदेश जाकर बसने का चलन बढ़ता ही जा रहा है। यदि युवा विदेश जाकर आधुनिक तकनीक सीखकर कुछ सालों में आ जाए और उसका प्रयोग देश के विकास में करे तो ठीक है पर बच्चों के विदेश बसने के दुष्परिणाम यह हो रहे हैं कि रिश्तों की अहमियत खत्म हो रही हैं। माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन के रिश्तों से आत्मियता,पारिवारिक सौहार्दता, जिम्मेदारी का अहसास शनैः शनैः विलुप्त होता जा रहा है। शहरों में अधिकांश बुजुर्ग अकेले मानसिक गरीबी के साथ अंदर ही अंदर घुटन को लिए अपना जीवन व्यापन कर रहे है। वृद्धाश्रम बढ़ते जा रहे है। हमारे देश की होनहार प्रतिभाओं का उपयोग दूसरे देश कर रहे है। नौजवान पीढ़ी का विदेश जाना देश की आर्थिक तंगी का भी बड़ा कारण है।
कई बार माता-पिता के अंतिम समय में उनके साथ न होना , उनके दर्द और उनकी अंतिम इच्छाओं को न जान पाना उन बच्चों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ता हैं जो उनसे हजारों मील दूर होते हैं। यह दूरी एक प्रकार की असहनीय पीड़ा का कारण बनती है, क्योंकि वे अपने माता-पिता को अंतिम विदाई देने के लिए उपस्थित नहीं हो पाते। ऐसी स्थिति में, बच्चों को कई बार अपने परिवार और पारिवारिक मूल्यों के प्रति गहरा पछतावा और अपराधबोध महसूस होता है। माता-पिता की मृत्यु के बाद, ये बच्चे अक्सर आत्म-मंथन करते हैं कि उन्होंने माता-पिता के अंतिम समय में उनकी देखभाल क्यों नहीं की? वे मानसिक रूप से उन क्षणों को पुनः जीने की कोशिश करते हैं और यह सोचते हैं कि अगर वे पास होते, तो शायद कुछ चीजें बदल सकती थीं पर "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत|"
अतः देश में रहते हुए देश की आय बढ़ाना और माता-पिता का सहारा बनना एक आदर्श दृष्टिकोण है। इससे न केवल देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, बल्कि पारिवारिक बंधन भी गहरे होते हैं। स्थानीय व्यवसायों और उद्योगों में योगदान देकर हम रोजगार सृजन और विकास में भागीदार बनते हैं। इस प्रकार, देश और परिवार दोनों के प्रति यह समर्पण और संतुलन जीवन को सच्चे अर्थ में सफल और समृद्ध बनाता हैं।
-Ms.Taruna Ozha
Coordinator Secondary